भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में | Essay on Indian farmer in Hindi

भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में | Essay on Indian farmer in Hindi

भारतीय किसान पर निबंध 100 शब्दों में

रूपरेखा - १. जन-जीवन के लिए कृषि और उसका महत्त्व । २. भारतीय कृषक के सुख और दुःख का वर्णन - (क) स्वतन्त्रता से पूर्व के सुख और दुःख । (ख) स्वतन्त्र भारत में किसान की स्थिति एवं अवस्था । ३. वर्तमान समय में कृषक की समस्याएँ । ४. समस्याओं को हल करने के उपाय । ५. सरकार के प्रयास । ६. कृषक के प्रति हमारा कर्तव्य ।

जन-जीवन के लिए कृषि और उसका महत्त्व

हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का मूलाधार कृषि ही है । हमारा भोजन, वस्त्र तथा फल-फूल आदि हमें सभी कुछ कृषि से ही प्राप्त होता है । हमारे देश की जनसंख्या का ७०% भाग कृषि-कार्य करके अपनी आजीविका कमाता है । कृषि-कार्य में जुटे हुए ये लोग ही किसान कहलाते हैं । ये भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आचार विचार के प्रतीक होते हैं । इन्हीं के बल तथा सेवा कार्य पर समाज का ढाँचा खड़ा रहता है । शहर की चमक-दमक, नारियों के फैशन तथा नेताओं के सैर-सपाटे सबके सब किसान के कन्धों पर ही टिके हैं । यह सबका अन्नदाता, वस्त्रदाता और जीवनदाता है । सारा समाज उसी के बल पर पनपता है । अतः जन-जीवन के लिए उसका विशेष महत्त्व है।

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भारतीय किसान पर एस्से

भारतीय कृषक के सुख और दुःख का वर्णन

किसान का जीवन सादा और सरल होता है । वास्तव में भारतीय किसान 'सादा जीवन उच्च विचार' का प्रतीक होता है । उसका प्रकृति से सीधा सम्बन्ध होता है । प्रकृति के निकट रहने से उसका स्वास्थ्य उत्तम हो जाता है । किसान का स्वभाव भी सरल होता है । छल-कपट, ईर्ष्या और द्वेष तो वह जानता ही नहीं । यदि उसके खेत से कोई कुछ ले भी जाता है तो वह इसकी कोई चिन्ता नहीं करता और न बदले की भावना रखता है । इस प्रकार भारतीय किसान का जीवन सादा, सरल और स्वास्थ्य से पूर्ण होता है ।

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भारतीय किसान पर निबंध 300 शब्दों में

स्वतन्त्रता से पूर्व के सुख और दुःख

कृषक जीवन में जहाँ कुछ सुख हैं, वहाँ अनेक दुःख भी हैं । अतिवृष्टि, अनावृष्टि, आँधी, जंगली पशु, चोर और फसल की बीमारी का भय उसे सदैव आतंकित रखता है | घोर गर्मी,शीत और वर्षा में भी वह अपने खेत में काम करता है, तब जाकर कहीं उसकी फसल तैयार होती है और फसल सकुशल घर आ जाए तो यह उसकी सबसे बड़ी विजय होती है ।

स्वतन्त्र भारत में किसान की स्थिति एवं अवस्था । 

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय किसान की दशा बहुत सोचनीय थी । समाज में उसका उचित मान भी न था और उसके परिश्रम का उसे बहुत कम मूल्य मिलता था । साहूकारों और जमींदारो के  कारण उसका जीवन कष्टमय हो गया था । पहले भारतवर्ष का कोई भी ग्राम ऐसा न था जहाँ के -किसान साहूकार के ऋणी न हों । उसका सारा जीवन ब्याज चकाते-चकाते ही बीतता था । पहले राष्ट्रीय बाल भारती कक्षा-8 जमींदार भी किसानों का खूब शोषण करते थे । इसीलिए भारत सरकार ने सर्वप्रथम जमींदारी और साहूकारी प्रथा को ही समाप्त किया । इसके अतिरिक्त आज भी ग्रामों में सफाई, शिक्षा और मनोरंजन के साधनों का अभाव रहता है । इसीलिए किसानों का सारा सुख, दुःख में बदल जाता है। वर्षा ऋतु में तो ग्रामों में कीचड़ गन्दगी और मच्छरों का राज हो जाता है | इससे भी किसान का जीवन दुर्लभ हो जाता है । अच्छे हल, बैल, बीज, खाद, कृषि-यन्त्र तथा उचित सिंचाई के अभाव से उसे अपने परिश्रम का उचित फल नहीं मिलता है जिससे कि वह सदैव दुःखी रहता है ।

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भारतीय किसान पर निबंध 150 शब्दों में

वर्तमान समय में कृषक की समस्याएँ 

स्वतन्त्र भारत की लोकप्रिय सरकार ने किसानों की दशा को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किए हैं । सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया, चकबन्दी योजना चलाई, पंचायतों को नए अधिकार दिए, ग्रामों में विद्यालय खोले तथा सरकारी समितियों की स्थापना की । इन सुविधाओं के मिलने से भारतीय किसान अब जमींदार, व्यापारी और साहूकार के चंगुल से मुक्त हो गया है | आज उसे सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी दी जा रही है जिससे कि वह अच्छे बीज, खाद और कृषि-यन्त्र खरीद सके । किसान को अन्न का उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से भारत सरकार प्रत्येक वर्ष गेहूँ का एक न्यूनतम मूल्य निश्चित कर देती है तथा उस मूल्य पर किसान से स्वयं गेहूँ खरीदती है जिससे किसान को अन्न का उचित मूल्य मिल जाता है और इस प्रकार वह अब थोक व्यापारियों के चंगुल से मुक्त हो गया है । सन १६८८ में भारत सरकार ने अपने वार्षिक बजट में कृषि एवं कृषकों को अनेकानेक सुविधाएँ दी हैं । अब इन सुविधाओं के मिलने से किसान के जीवन में पर्याप्त परिवर्तन होता जा रहा है ।

समस्याओं को हल करने के उपाय 

यद्यपि भारतीय किसान साहूकारों, जमींदारों और व्यापारियों से मुक्ति पा चुका है किन्तु प्रायः अब भ्रष्ट सरकारी अधिकारी उसे परेशान करते हैं । आज भी उसकी अशिक्षा, दुर्बलता और पिछड़ेपन का लाभ अधिकारी, क्लर्क और चपरासी तक उठाते हैं । सरकार से मिलने वाली सुविधा का लाभ भी गिने-चुने किसानों को ही मिल पाता है । इसीलिए फरवरी १६८८ में किसानों ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए मेरठ में विशाल प्रदर्शन किया था ।

सरकार के प्रयास 

आजकल भारत सरकार अपनी पंचवर्षीय योजनाओं पर अरबों रुपया व्यय कर रही है । इन योजनाओं को कृषि पर केन्द्रीभूत कर दिया गया है । सरकार ने गन्ने तथा अनाज के मूल्यों को ऊँचा बनाकर किसानों को उसके परिश्रम का उचित मूल्य दिलवाया है । इससे भारतीय किसान का जीवन बदल गया है | आज अधिकतर किसान कच्चे झोपड़ों के स्थान पर पक्के मकान बनवा चुके हैं । उनके बच्चे नगरों में उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा आधुनिक कृषि-यन्त्रों के प्रयोग से उनकी उपज दिन-दूनीरात-चौगुनी बढ़ती जा रही है ।

भारतीय किसान पर निबंध 50 शब्दों में

कृषक के प्रति हमारा कर्तव्य ।

वास्तव में किसान का जीवन त्याग, तपस्या, सेवा और सरलता का प्रतीक है । उन्होंने देश की खाद्य समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । उनके महत्त्व को समझकर स्वर्गीय श्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को "जय जवान जय किसान" का नारा दिया था । हमें भी किसानों के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए तथा उनकी उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए । वह सुखी हैं, तो देश सुखी है ।

भारतीय किसान पर निबंध  १० लाइन 

  1. हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का मूलाधार कृषि ही है । 
  2. हमारा भोजन, वस्त्र तथा फल-फूल आदि हमें सभी कुछ कृषि से ही प्राप्त होता है। 
  3. हमारे देश की जनसंख्या का ७०% भाग कृषि-कार्य करके अपनी आजीविका कमाता है ।
  4. कृषि-कार्य में जुटे हुए ये लोग ही किसान कहलाते हैं । 
  5. किसान भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आचार विचार के प्रतीक होते हैं । 
  6. किसान के बल तथा सेवा कार्य पर समाज का ढाँचा खड़ा रहता है । 
  7. शहर की चमक-दमक, नारियों के फैशन तथा नेताओं के सैर-सपाटे सबके सब किसान के कन्धों पर ही टिके हैं । 
  8. यह सबका अन्नदाता, वस्त्रदाता और जीवनदाता है ।
  9. सारा समाज उसी के बल पर पनपता है । 
  10. अतः जन-जीवन के लिए उसका विशेष महत्त्व है।
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प्रश्न-उत्तर 

वर्तमान समय में कृषक की समस्याएँ क्या हैं ?
आज भी ग्रामों में सफाई, शिक्षा और मनोरंजन के साधनों का अभाव रहता है । इसीलिए किसानों का सारा सुख, दुःख में बदल जाता है। वर्षा ऋतु में तो ग्रामों में कीचड़ गन्दगी और मच्छरों का राज हो जाता है | इससे भी किसान का जीवन दुर्लभ हो जाता है । अच्छे हल, बैल, बीज, खाद, कृषि-यन्त्र तथा उचित सिंचाई के अभाव से उसे अपने परिश्रम का उचित फल नहीं मिलता है जिससे कि वह सदैव दुःखी रहता है ।

जन-जीवन के लिए कृषि और उसका महत्त्व  है ?
हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का मूलाधार कृषि ही है । हमारा भोजन, वस्त्र तथा फल-फूल आदि हमें सभी कुछ कृषि से ही प्राप्त होता है । हमारे देश की जनसंख्या का ७०% भाग कृषि-कार्य करके अपनी आजीविका कमाता है । कृषि-कार्य में जुटे हुए ये लोग ही किसान कहलाते हैं । ये भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आचार विचार के प्रतीक होते हैं । इन्हीं के बल तथा सेवा कार्य पर समाज का ढाँचा खड़ा रहता है । शहर की चमक-दमक, नारियों के फैशन तथा नेताओं के सैर-सपाटे सबके सब किसान के कन्धों पर ही टिके हैं । यह सबका अन्नदाता, वस्त्रदाता और जीवनदाता है । सारा समाज उसी के बल पर पनपता है । अतः जन-जीवन के लिए उसका विशेष महत्त्व है।

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